डॉक्टर भीमराव अंबेडकर


डॉ॰ बाबासाहब आम्बेडकर
(14 अप्रैल, 1891 – 6 दिसंबर, 1956)
Biography of Dr Babasaheb Ambedkar in Hindi


What are B. R. Ambedkar achievements? - Quora
Dr Babasaheb Ambedkar


भीमराव रामजी आम्बेडकर (14 अप्रैल, 1891 – 6 दिसंबर, 1956), डॉ॰ बाबासाहब आम्बेडकर नाम से लोकप्रिय, भारतीय बहुज्ञ, विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, और समाजसुधारक थे। उन्होंने दलित बौद्ध आंदोलन को प्रेरित किया और अछूतों (दलितों) से सामाजिक भेदभाव के विरुद्ध अभियान चलाया था। श्रमिकों, किसानों और महिलाओं के अधिकारों का समर्थन भी किया था। वे स्वतंत्र भारत के प्रथम विधि एवं न्याय मंत्री, भारतीय संविधान के जनक एवं भारत गणराज्य के निर्माता थे।

आम्बेडकर विपुल प्रतिभा के छात्र थे। उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स दोनों ही विश्वविद्यालयों से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधियाँ प्राप्त कीं तथा विधि, अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में शोध कार्य भी किये थे। व्यावसायिक जीवन के आरम्भिक भाग में ये अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रहे एवं वकालत भी की तथा बाद का जीवन राजनीतिक गतिविधियों में अधिक बीता। तब आम्बेडकर भारत की स्वतन्त्रता के लिए प्रचार और चर्चाओं में शामिल हो गए और पत्रिकाओं को प्रकाशित करने, राजनीतिक अधिकारों की वकालत करने और दलितों के लिए सामाजिक स्वतंत्रता की वकालत और भारत के निर्माण में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा।

1956 में उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया। 1990 में, उन्हें भारत रत्न, भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से मरणोपरांत सम्मानित किया गया था। 14 अप्रैल को उनका जन्म दिवस आम्बेडकर जयंती एक तौहार के रूप में भारत समेत दुनिया भर में मनाया जाता है। आम्बेडकर की विरासत में लोकप्रिय संस्कृति में कई स्मारक और चित्रण शामिल हैं।

भीमराव अंबेडकर का प्रारंभिक जीवन – Dr Babasaheb Ambedkar Information

आम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को ब्रिटिश भारत के मध्य भारत प्रांत (अब मध्य प्रदेश) में स्थित महू नगर सैन्य छावनी में हुआ था। वे रामजी मालोजी सकपाल और भीमाबाई की १४ वीं व अंतिम संतान थे। उनका परिवार कबीर पंथ को माननेवाला मराठी मूूल का था और वो वर्तमान महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में आंबडवे गाँव का निवासी था। वे हिंदू महार जाति से संबंध रखते थे, जो तब अछूत कही जाती थी और इस कारण उन्हें सामाजिक और आर्थिक रूप से गहरा भेदभाव सहन करना पड़ता था। भीमराव आम्बेडकर के पूर्वज लंबे समय से ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में कार्यरत रहे थे और उनके पिता रामजी सकपाल, भारतीय सेना की महू छावनी में सेवारत थे तथा यहां काम करते हुये वे सुबेदार के पद तक पहुँचे थे। उन्होंने मराठी और अंग्रेजी में औपचारिक शिक्षा प्राप्त की थी।

अपनी जाति के कारण बालक भीम को सामाजिक प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा था। विद्यालयी पढ़ाई में सक्षम होने के बावजूद छात्र भीमराव को छुआछूत के कारण अनेका प्रकार की कठनाइयों का सामना करना पड़ता था। रामजी आम्बेडकर ने सन 1898 में जिजाबाई से पुनर्विवाह कर लिया। 7 नवम्बर 1900 को रामजी सकपाल ने सातारा की गवर्न्मेण्ट हाइस्कूल में अपने बेटे भीमराव का नाम भिवा रामजी आंबडवेकर दर्ज कराया। भिवा उनके बचपन का नाम था। आम्बेडकर का मूल उपनाम सकपाल की बजाय आंबडवेकर लिखवाया था, जो कि उनके आंबडवे गाँव से संबंधित था। क्योंकी कोकण प्रांत के लोग अपना उपनाम गाँव के नाम से रखते थे, अतः आम्बेडकर के आंबडवे गाँव से आंबडवेकर उपनाम स्कूल में दर्ज करवाया गया। बाद में एक देवरुखे ब्राह्मण शिक्षक कृष्णा महादेव आंबेडकर जो उनसे विशेष स्नेह रखते थे, ने उनके नाम से 'आंबडवेकर' हटाकर अपना सरल 'आंबेडकर' उपनाम जोड़ दिया। तब से आज तक वे आम्बेडकर नाम से जाने जाते हैं।

रमाबाई आम्बेडकर, आम्बेडकर की पत्नी


रामजी सकपाल परिवार के साथ बंबई (अब मुंबई) चले आये। अप्रैल 1906 में, जब भीमराव लगभग 15 वर्ष आयु के थे, तो नौ साल की लड़की रमाबाई से उनकी शादी कराई गई थी। तब वे पांचवी अंग्रेजी कक्षा पढ रहे थे। उन दिनों भारत में बाल-विवाह का प्रचलन था।
डॉक्टर भीमराव अंबेडकर – B. R. Ambedkar का जन्म भारत के मध्यप्रांत में हुआ था। 14 अप्रैल 1891 में मध्यप्रदेश के इंदौर के पास महू में रामजी मालोजी सकपाल और भीमाबाई के घर में अंबेडकर जी पैदा हुए था। जब अंबेडकर जी का जन्म हुआ था तब उनके पिता इंडियन आर्मी में सूबेदार थे और इनकी पोस्टिंग इंदौर में थी।

3 साल बाद 1894 में इनके पिता रामजी मालोजी सकपाल रिटायर हो गए और उनका पूरा परिवार महाराष्ट्र के सातारा में शिफ्ट हो गया। आपको बता दें कि भीमराव अंबेडकर अपनी माता-पिता की 14वीं और आखिरी संतान थे ये अपने परिवार में सबसे छोटे थे इसलिए पूरे परिवार के चहेते भी थे।

भीमराव अंबेडकर – B. R. Ambedkar जी मराठी परिवार से भी तालोक्कात रखते थे। वे महाराष्ट्र के अम्बावाडे़ से संबंध रखते थे जो कि अब महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में हैं। वे महार जाति यानि की दलित वर्ग से संपर्क रखते थे जिसकी वजह से उनके साथ सामाजिक और आर्थिक रूप से गहरा भेदभाव किया जाता था।

यही नहीं दलित होने की वजह से उन्हें अपने उच्च शिक्षा पाने के लिए भी काफी संघर्ष करना पड़ा था। हालांकि सभी कठिनाइयों को पार करते हुए उन्होनें उच्च शिक्षा हासिल की। और दुनिया के सामने खुद को साबित कर दिखाया।
डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी की शिक्षा – B R Ambedkar Education
डॉक्टर भीमराव जी के पिता के आर्मी में होने की वजह से उन्हें सेना के बच्चों को दिए जाने वाले विशेषाधिकारों का फायदा मिला लेकिन उनके दलित होने की वजह से इस स्कूल में भी उन्हें जातिगत भेदभाव का शिकार होना पड़ा था दरअसल उनकी कास्ट के बच्चों को क्लास रूम के अंदर तक बैठने की अनुमति नहीं थी और तो और यहां उनको पानी भी नहीं छूने दिया जाता था, स्कूल का चपरासी उनको ऊपर से पानी डालकर पानी देता था वहीं अगर चपरासी छुट्टी पर है तो दलित बच्चों को उस दिन पानी भी नसीब नहीं होता था फिलहाल अंबडेकर जी ने तमाम संघर्षों के बाद अच्छी शिक्षा हासिल की।

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DEGREES of Dr B.R. Ambedkar 

प्राथमिक शिक्षा

आंबेडकर ने सातारा शहर में राजवाड़ा चौक पर स्थित गवर्न्मेण्ट हाईस्कूल (अब प्रतापसिंह हाईस्कूल) में 7 नवंबर 1900 को अंग्रेजी की पहली कक्षा में प्रवेश लिया। इसी दिन से उनके शैक्षिक जीवन का आरम्भ हुआ था, इसलिए 7 नवंबर को महाराष्ट्र में विद्यार्थी दिवस रूप में मनाया जाता हैं। उस समय उन्हें 'भिवा' कहकर बुलाया जाता था। स्कूल में उस समय 'भिवा रामजी आंबेडकर' यह उनका नाम उपस्थिति पंजिका में क्रमांक - 1914 पर अंकित था। जब वे अंग्रेजी चौथी कक्षा की परीक्षा उत्तीर्ण हुए, तब क्योंकि यह अछूतों में असामान्य बात थी, इसलिए भीमराव की इस सफलता को अछूतों के बीच और सार्वजनिक समारोह में मनाया गया, और उनके परिवार के मित्र एवं लेखक दादा केलुस्कर द्वारा खुद की लिखी 'बुद्ध की जीवनी' उन्हें भेंट दी गयी। इसे पढकर उन्होंने पहली बार गौतम बुद्ध व बौद्ध धर्म को जाना एवं उनकी शिक्षा से प्रभावित हुए।
माध्यमिक शिक्षा

1897 में, आम्बेडकर का परिवार मुंबई चला गया जहां उन्होंने एल्फिंस्टोन रोड पर स्थित गवर्न्मेंट हाईस्कूल में आगे कि शिक्षा प्राप्त की।

एक छात्र के रूप में आम्बेडकर

बॉम्बे विश्वविद्यालय में स्नातक अध्ययन
1907 में, उन्होंने अपनी मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की और अगले वर्ष उन्होंने एल्फिंस्टन कॉलेज में प्रवेश किया, जो कि बॉम्बे विश्वविद्यालय से संबद्ध था। इस स्तर पर शिक्षा प्राप्त करने वाले अपने समुदाय से वे पहले व्यक्ति थे।

1912 तक, उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और राजनीतिक विज्ञान में कला स्नातक (बी॰ए॰) प्राप्त की, और बड़ौदा राज्य सरकार के साथ काम करने लगे। उनकी पत्नी ने अभी अपने नये परिवार को स्थानांतरित कर दिया था और काम शुरू किया जब उन्हें अपने बीमार पिता को देखने के लिए मुंबई वापस लौटना पड़ा, जिनका 2 फरवरी 1913 को निधन हो गया।
इस मौके पर एक दीक्षांत समारोह का भी आयोजन किया गया इस समारोह में भीमराव अंबेडकर की प्रतिभा से प्रभावित होकर उनके शिक्षक श्री कृष्णाजी अर्जुन केलुस्कर ने उन्होनें खुद से लिखी गई किताब ‘बुद्ध चरित्र’ गिफ्ट के तौर पर दी। वहीं बड़ौदा नरेश सयाजी राव गायकवाड की फेलोशिप पाकर अंबेडकर जी ने अपनी आगे की पढ़ाई जारी रखी।

आपको बता दें कि अंबेडकर जी की बचपन से ही पढ़ाई में खासी रूचि थी और वे एक होनहार और कुशाग्र बुद्धि के विद्यार्थी थे इसलिए वे अपनी हर परीक्षा में अच्छे अंक के साथ सफल होते चले गए। 1908 में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर – B. R. Ambedkar ने एलफिंस्टोन कॉलेज में एडमिशन लेकर फिर इतिहास रच दिया। दरअसल वे पहले दलित विद्यार्थी थे जिन्होनें उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए कॉलेज में दाखिला लिया था।

उन्होनें 1912 में मुबई विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन की परीक्षा पास की। संस्कृत पढने पर मनाही होने से वह फारसी से उत्तीर्ण हुए। इस कॉलेज से उन्होनें अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में डिग्री के साथ ग्रेजुएशन की उपाधि प्राप्त की।

फेलोशिप पाकर अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय में लिया दाखिला – Columbia University

कोलंबिया विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर अध्ययन
कोलंबिया विश्वविद्यालय में आम्बेडकर


1913 में, आम्बेडकर 22 साल की आयु में संयुक्त राज्य अमेरिका चले गए जहां उन्हें सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय (बड़ौदा के गायकवाड़) द्वारा स्थापित एक योजना के तहत न्यू यॉर्क शहर स्थित कोलंबिया विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर शिक्षा के अवसर प्रदान करने के लिए तीन साल के लिए 11.50 डॉलर प्रति माह बड़ौदा राज्य की छात्रवृत्ति प्रदान की गई थी। वहां पहुँचने के तुरन्त बाद वे लिविंगस्टन हॉल में पारसी मित्र नवल भातेना के साथ बस गए। जून 1915 में उन्होंने अपनी कला स्नातकोत्तर (एम॰ए॰) परीक्षा पास की, जिसमें अर्थशास्त्र प्रमुख विषय, और समाजशास्त्र, इतिहास, दर्शनशास्त्र और मानव विज्ञान यह अन्य विषय थे। उन्होंने स्नातकोत्तर के लिए एशियंट इंडियन्स कॉमर्स (प्राचीन भारतीय वाणिज्य) विषय पर शोध कार्य प्रस्तुत किया। आम्बेडकर जॉन डेवी और लोकतंत्र पर उनके काम से प्रभावित थे।

1916 में, उन्हें अपना दूसरा शोध कार्य, नेशनल डिविडेंड ऑफ इंडिया - ए हिस्टोरिक एंड एनालिटिकल स्टडी के लिए दूसरी कला स्नातकोत्तर प्रदान की गई, और अन्ततः उन्होंने लंदन की राह ली। 1916 में अपने तीसरे शोध कार्य इवोल्युशन ओफ प्रोविन्शिअल फिनान्स इन ब्रिटिश इंडिया के लिए अर्थशास्त्र में पीएचडी प्राप्त की, अपने शोध कार्य को प्रकाशित करने के बाद 1927 में अधिकृत रुप से पीएचडी प्रदान की गई। 9 मई को, उन्होंने मानव विज्ञानी अलेक्जेंडर गोल्डनवेइज़र द्वारा आयोजित एक सेमिनार में भारत में जातियां: उनकी प्रणाली, उत्पत्ति और विकास नामक एक शोध पत्र प्रस्तुत किया, जो उनका पहला प्रकाशित पत्र था। 3 वर्ष तक की अवधि के लिये मिली हुई छात्रवृत्ति का उपयोग उन्होंने केवल दो वर्षों में अमेरिका में पाठ्यक्रम पूरा करने में किया और 1916 में वे लंदन गए।

लंदन स्कूल ऑफ इकोनामिक्स एण्ड पोलिटिकल सांइस – University of London


लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के अपने प्रोफेसरों और दोस्तों के साथ आम्बेडकर (केंद्र रेखा में, दाएं से पहले), 1916 - 17

सन 1922 में एक बैरिस्टर के रूप में डॉ॰ भीमराव आम्बेडकर


अक्टूबर 1916 में, ये लंदन चले गये और वहाँ उन्होंने ग्रेज़ इन में बैरिस्टर कोर्स (विधि अध्ययन) के लिए प्रवेश लिया, और साथ ही लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में भी प्रवेश लिया जहां उन्होंने अर्थशास्त्र की डॉक्टरेट (Doctorate) थीसिस पर काम करना शुरू किया। जून 1917 में, विवश होकर उन्हें अपना अध्ययन अस्थायी तौरपर बीच में ही छोड़ कर भारत लौट आए क्योंकि बड़ौदा राज्य से उनकी छात्रवृत्ति समाप्त हो गई थी। लौटते समय उनके पुस्तक संग्रह को उस जहाज से अलग जहाज पर भेजा गया था जिसे जर्मन पनडुब्बी के टारपीडो द्वारा डुबो दिया गया। ये प्रथम विश्व युद्ध का काल था। उन्हें चार साल के भीतर अपने थीसिस के लिए लंदन लौटने की अनुमति मिली। बड़ौदा राज्य के सेना सचिव के रूप में काम करते हुये अपने जीवन में अचानक फिर से आये भेदभाव से डॉ॰ भीमराव आम्बेडकर निराश हो गये और अपनी नौकरी छोड़ एक निजी ट्यूटर और लेखाकार के रूप में काम करने लगे। यहाँ तक कि उन्होंने अपना परामर्श व्यवसाय भी आरम्भ किया जो उनकी सामाजिक स्थिति के कारण विफल रहा। अपने एक अंग्रेज जानकार मुंबई के पूर्व राज्यपाल लॉर्ड सिडनेम के कारण उन्हें मुंबई के सिडनेम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनोमिक्स मे राजनीतिक अर्थव्यवस्था के प्रोफेसर के रूप में नौकरी मिल गयी। 1920 में कोल्हापुर के शाहू महाराज, अपने पारसी मित्र के सहयोग और कुछ निजी बचत के सहयोग से वो एक बार फिर से इंग्लैंड वापस जाने में सफ़ल हो पाए तथा 1921 में विज्ञान स्नातकोत्तर (एम॰एससी॰) प्राप्त की, जिसके लिए उन्होंने 'प्रोवेन्शियल डीसेन्ट्रलाईज़ेशन ऑफ इम्पीरियल फायनेन्स इन ब्रिटिश इण्डिया' (ब्रिटिश भारत में शाही अर्थ व्यवस्था का प्रांतीय विकेंद्रीकरण) खोज ग्रन्थ प्रस्तुत किया था। 1922 में, उन्हें ग्रेज इन ने बैरिस्टर-एट-लॉज डिग्री प्रदान की और उन्हें ब्रिटिश बार में बैरिस्टर के रूप में प्रवेश मिल गया। 1923 में, उन्होंने अर्थशास्त्र में डी॰एससी॰ (डॉक्टर ऑफ साईंस) उपाधि प्राप्त की। उनकी थीसिस "दी प्राब्लम आफ दि रुपी: इट्स ओरिजिन एंड इट्स सॉल्यूशन" (रुपये की समस्या: इसकी उत्पत्ति और इसका समाधान) पर थी। लंदन का अध्ययन पूर्ण कर भारत वापस लौटते हुये भीमराव आम्बेडकर तीन महीने जर्मनी में रुके, जहाँ उन्होंने अपना अर्थशास्त्र का अध्ययन, बॉन विश्वविद्यालय में जारी रखा। किंतु समय की कमी से वे विश्वविद्यालय में अधिक नहीं ठहर सकें। उनकी तीसरी और चौथी डॉक्टरेट्स (एलएल॰डी॰, कोलंबिया विश्वविद्यालय, 1952 और डी॰लिट॰, उस्मानिया विश्वविद्यालय, 1953) सम्मानित उपाधियाँ थीं।

फेलोशिप खत्म होने पर उन्हें भारत लौटना पड़ा। वे ब्रिटेन होते हुए भारत वापस लौट रहे थे। तभी उन्होंने वहां लंदन स्कूल ऑफ इकोनामिक्स एण्ड पोलिटिकल सांइस में एम.एससी. और डी. एस सी. और विधि संस्थान में बार-एट-लॉ की उपाधि के लिए अपना रजिस्ट्रेशन करवाया और फिर भारत लौटे।

भारत लौटने पर उन्होनें सबसे पहले स्कॉलरशिप की शर्त के मुताबिक बड़ौदा के राजा के दरबार में सैनिक अधिकारी और वित्तीय सलाहकार का दायित्व स्वीकार किया। उन्होनें राज्य के रक्षा सचिव के रूप में काम किया।

हालांकि उनके लिए ये काम इतना आसान नहीं था क्योंकि जातिगत भेदभाव और छूआछूत की वजह से उन्हें काफी पीड़ा सहनी पड़ रही थी यहां तक कि पूरे शहर में उन्हें किराए का मकान देने तक के लिए कोई तैयार नहीं था।
Ambedkar with his family members. From left, son Yashwant, wife Ramabai, and brother's wife Laxmibai. Source
Ambedkar with his family members. From left, son Yashwant, wife Ramabai, and brother’s wife Laxmibai.

इसके बाद अंबेडकर – B. R. Ambedkar नें सैन्य मंत्री की जॉब छोड़कर, एक निजी शिक्षक और एकाउंटेंट की नौकरी ज्वाइन कर ली। यहां उन्होनें कंसलटेन्सी बिजनेस (परामर्श व्यवसाय) भी स्थापित किया लेकिन यहां भी छूआछूत की बीमारी ने पीछा नहीं छोड़ा और सामाजिक स्थिति की वजह से उनका ये बिजनेस बर्बाद हो गया।


आखिरी में वे मुंबई वापस लौट गए और जहां उनकी मद्द बॉम्बे गर्वमेंट ने की और वे मुंबई के सिडेनहम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनॉमिक (Sydenham College of Commerce and Economic) में राजनैतिक अर्थशास्त्र के प्रोफेसर बन गए। इस दौरान उन्होनें अपनी आगे की पढा़ई के लिए पैसे इकट्ठे किए और अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए साल 1920 में एक बार फिर वे भारत के बाहर इंग्लैंड चले गए।

1921 में उन्होनें लंदन स्कूल ऑफ इकोनामिक्स एण्ड पोलिटिकल सांइस से मास्टर डिग्री हासिल की और दो साल बाद उन्होनें अपना डी.एस.सी की डिग्री प्राप्त की।

आपको बता दें कि डॉक्टर भीमराव अंबेडकर – B. R. Ambedkar ने बॉन, जर्मनी विश्वविद्यालय में भी पढ़ाई के लिए कुछ महीने गुजारे। साल 1927 में उन्होनें अर्थशास्त्र में डीएससी किया। कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होनें ब्रिटिश बार में बैरिस्टर के रूप में काम किया। 8 जून, 1927 को उन्हें कोलंबिया विश्वविद्यालय द्धारा डॉक्टरेट से सम्मानित किया गया था।

छूआछूत और जातिगत भेदभाव, और छूआछूत मिटाने की लड़ाई (दलित मूवमेंट) – Dalit Movement

भारत लौटने पर, उन्होंने देश में जातिगत भेदभाव के खिलाफ लड़ने का फैसला लिया जिसकी वजह से उन्हें कई बार निरादर और अपनी जीवन में इतना कष्ट सहना पड़ा था। अंबेडकर जी ने देखा की छूआछूत और जातिगत भेदभाव किस तरह देश को बिखेर रही थी अब तक छूआछूत की बीमारी काफी गंभीर हो चुकी थी जिसे देश से बाहर निकालना ही अंबेडकर जी ने अपना कर्तव्य समझा और इसी वजह से उन्होनें इसके खिलाफ मोर्चा छोड़ दिया।


आम्बेडकर ने कहा था "छुआछूत गुलामी से भी बदतर है।" आम्बेडकर बड़ौदा के रियासत राज्य द्वारा शिक्षित थे, अतः उनकी सेवा करने के लिए बाध्य थे। उन्हें महाराजा गायकवाड़ का सैन्य सचिव नियुक्त किया गया, लेकिन जातिगत भेदभाव के कारण कुछ ही समय में उन्हें यह नौकरी छोड़नी पडी। उन्होंने इस घटना को अपनी आत्मकथा, वेटिंग फॉर अ वीजा में वर्णित किया। इसके बाद, उन्होंने अपने बढ़ते परिवार के लिए जीविका साधन खोजने के पुनः प्रयास किये, जिसके लिये उन्होंने लेखाकार के रूप में, व एक निजी शिक्षक के रूप में भी काम किया, और एक निवेश परामर्श व्यवसाय की स्थापना की, किन्तु ये सभी प्रयास तब विफल हो गये जब उनके ग्राहकों ने जाना कि ये अछूत हैं। 1918 में, ये मुंबई में सिडेनहम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनॉमिक्स में राजनीतिक अर्थशास्त्र के प्रोफेसर बने। हालांकि वे छात्रों के साथ सफल रहे, फिर भी अन्य प्रोफेसरों ने उनके साथ पानी पीने के बर्तन साझा करने पर विरोध किया।
The statue of Dr Babasaheb Ambedkar, the chair and the table on which he used to sit while writing the Constitution of India.
भारत सरकार अधिनियम 1919, तैयार कर रही साउथबरो समिति के समक्ष, भारत के एक प्रमुख विद्वान के तौर पर आम्बेडकर को साक्ष्य देने के लिये आमंत्रित किया गया। इस सुनवाई के दौरान, आम्बेडकर ने दलितों और अन्य धार्मिक समुदायों के लिये पृथक निर्वाचिका और आरक्षण देने की वकालत की। 1920 में, बंबई से, उन्होंने साप्ताहिक मूकनायक के प्रकाशन की शुरूआत की। यह प्रकाशन शीघ्र ही पाठकों मे लोकप्रिय हो गया, तब आम्बेडकर ने इसका प्रयोग रूढ़िवादी हिंदू राजनेताओं व जातीय भेदभाव से लड़ने के प्रति भारतीय राजनैतिक समुदाय की अनिच्छा की आलोचना करने के लिये किया। उनके दलित वर्ग के एक सम्मेलन के दौरान दिये गये भाषण ने कोल्हापुर राज्य के स्थानीय शासक शाहू चतुर्थ को बहुत प्रभावित किया, जिनका आम्बेडकर के साथ भोजन करना रूढ़िवादी समाज मे हलचल मचा गया।

बॉम्बे हाईकोर्ट में विधि का अभ्यास करते हुए, उन्होंने अछूतों की शिक्षा को बढ़ावा देने और उन्हें ऊपर उठाने के प्रयास किये। उनका पहला संगठित प्रयास केंद्रीय संस्थान बहिष्कृत हितकारिणी सभा की स्थापना था, जिसका उद्देश्य शिक्षा और सामाजिक-आर्थिक सुधार को बढ़ावा देने के साथ ही अवसादग्रस्त वर्गों के रूप में सन्दर्भित "बहिष्कार" के कल्याण करना था। दलित अधिकारों की रक्षा के लिए, उन्होंने मूकनायक, बहिष्कृत भारत, समता, प्रबुद्ध भारत और जनता जैसी पांच पत्रिकाएं निकालीं।

सन 1925 में, उन्हें बम्बई प्रेसीडेंसी समिति में सभी यूरोपीय सदस्यों वाले साइमन कमीशन में काम करने के लिए नियुक्त किया गया। इस आयोग के विरोध में भारत भर में विरोध प्रदर्शन हुये। जहां इसकी रिपोर्ट को अधिकतर भारतीयों द्वारा नजरअंदाज कर दिया गया, आम्बेडकर ने अलग से भविष्य के संवैधानिक सुधारों के लिये सिफारिश लिखकर भेजीं।
'जयस्तंभ', कोरेगाँव भिमा में डॉ॰ बाबासाहब आम्बेडकर एवं उनके अनुयायि, 1 जनवरी 1927


द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध के अन्तर्गत १ जनवरी 1818 को हुई कोरेगाँव की लड़ाई के दौरान मारे गये भारतीय महार सैनिकों के सम्मान में आम्बेडकर ने 1 जनवरी 1927 को कोरेगाँव विजय स्मारक (जयस्तंभ) में एक समारोह आयोजित किया। यहाँ महार समुदाय से संबंधित सैनिकों के नाम संगमरमर के एक शिलालेख पर खुदवाये गये तथा कोरेगाँव को दलित स्वाभिमान का प्रतीक बनाया।

सन 1927 तक, डॉ॰ आम्बेडकर ने छुआछूत के विरुद्ध एक व्यापक एवं सक्रिय आंदोलन आरम्भ करने का निर्णय किया। उन्होंने सार्वजनिक आंदोलनों, सत्याग्रहों और जलूसों के द्वारा, पेयजल के सार्वजनिक संसाधन समाज के सभी वर्गों के लिये खुलवाने के साथ ही उन्होनें अछूतों को भी हिंदू मन्दिरों में प्रवेश करने का अधिकार दिलाने के लिये संघर्ष किया। उन्होंने महाड शहर में अछूत समुदाय को भी शहर की चवदार तालाब से पानी लेने का अधिकार दिलाने कि लिये सत्याग्रह चलाया। 1927 के अंत में सम्मेलन में, आम्बेडकर ने जाति भेदभाव और "छुआछूत" को वैचारिक रूप से न्यायसंगत बनाने के लिए, प्राचीन हिंदू पाठ, मनुस्मृति, जिसके कई पद, खुलकर जातीय भेदभाव व जातिवाद का समर्थन करते हैं, की सार्वजनिक रूप से निंदा की, और उन्होंने औपचारिक रूप से प्राचीन पाठ की प्रतियां जलाईं। 25 दिसंबर 1927 को, उन्होंने हजारों अनुयायियों के नेतृत्व में मनुस्मृति की प्रतियों को जलाया।इसकी स्मृति में प्रतिवर्ष 25 दिसंबर को मनुस्मृति दहन दिवस के रूप में आम्बेडकरवादियों और हिंदू दलितों द्वारा मनाया जाता है।

1930 में, आम्बेडकर ने तीन महीने की तैयारी के बाद कालाराम मन्दिर सत्याग्रह शुरू किया। कालाराम मन्दिर आंदोलन में लगभग 15,000 स्वयंसेवक इकट्ठे हुए, जिससे नाशिक की सबसे बड़ी प्रक्रियाएं हुईं। जुलूस का नेतृत्व एक सैन्य बैंड ने किया था, स्काउट्स का एक बैच, महिलाएं और पुरुष पहली बार भगवान को देखने के लिए अनुशासन, आदेश और दृढ़ संकल्प में चले गए थे। जब वे द्वार तक पहुँचे, तो द्वार ब्राह्मण अधिकारियों द्वारा बंद कर दिए गए।

साल 1919 में भारत सरकार अधिनियम की तैयारी के लिए दक्षिणबोरो समिति से पहले अपनी ग्वाही में अंबेडकर ने कहा कि अछूतों और अन्य हाशिए समुदायों के लिए अलग निर्वाचन प्रणाली होनी चाहिए। उन्होनें दलितों और अन्य धार्मिक बहिष्कारों के लिए आरक्षण का हक दिलवाने का प्रस्ताव भी रखा।


जातिगत भेदभाव के खत्म करने को लेकर अंबेडकर – B. R. Ambedkar ने लोगों तक अपनी पहुंच बनाने और समाज में फैली बुराईयों को समझने के तरीकों की खोज शुरु कर दी। जातिगत भेदभाव को खत्म करने और छूआछूत मिटाने के अंबेडकर जी के जूनून से उन्होनें ‘बहृक्रित हिताकरिनी सभा’ को खोजा निकाला। आपको बता दें कि इस संगठन का मुख्य उद्देश्य पिछड़े वर्ग में शिक्षा और सामाजिक-आर्थिक सुधार करना था।

इसके बाद 1920 में उन्होनें कलकापुर के महाराजा शाहजी द्धितीय की सहायता से ‘मूकनायक’ सामाजिक पत्र की स्थापना की। अंबेडकर जी के इस कदम से पूरे देश के समाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में हलचल पैदा कर दी थी इसके बाद से लोगों ने भीमराव अंबेडकर को जानना भी शुरु कर दिया था।

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर – B. R. Ambedkar ने ग्रे के इन में बार कोर्स पूरा करने के बाद अपना कानून काम करना शुरु कर दिया और उन्होनें जातिगत भेदभाव के मामलों की वकालत करने वाले विवादित कौशलों को लागू किया और जातिगत भेदभाव करने का आरोप ब्राह्राणों पर लगाया और कई गैर ब्राह्मण नेताओं के लिए लड़ाई लड़ी और सफलता हासिल की इन्ही शानदार जीत की बदौलत उन्हे दलितों के उत्थान के लिए लड़ाई लड़ने के लिए आधार मिला।
26 Interesting facts about Dr. B.R. Ambedkar
आपको बता दें कि 1927 में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर – B. R. Ambedkar ने छूआछूत मिटाने और जातिगत भेदभाव को पूरी तरह से खत्म करने के लिए सक्रिय रूप से काम किया। इसके लिए उन्होनें हिंसा का मार्ग अपनाने की बजाया, महात्मा गांधी के पदचिन्हों पर चले और दलितों के अधिकार के लिए पूर्ण गति से आंदोलन की शुरुआत की।

इस दौरान उन्होनें दलितों के अधिकारों के लिए लड़ाई की। इस आंदोलन के जरिए अंबेडकर जी नें यह मांग की है सार्वजनिक पेयजल स्त्रोत सभी के लिए खोले जाएं और सभी जातियों के लिए मंदिर में प्रवेश करने की अधिकार की भी बात की।

यही नहीं उन्होनें महाराष्ट्र के नासिक में कलाराम मंदिर में घुसने के लिए भेदभाव की वकालत करने के लिए हिंदुत्ववादियों की जमकर निंदा की और प्रतीकात्मक प्रदर्शन किया।

साल 1932 में दलितों के अधिकारों के क्रुसेडर के रूप में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर – B. R. Ambedkar की लोकप्रियता बढ़ती चली गई और उन्होनें लंदन के गोलमेज सम्मेलन में हिस्सा लेने का निमंत्रण भी मिला। हालांकि इस सम्मेलन में दलितों के मसीहा अंबेडकर जी ने महात्मा गांधी के विचारधारा का विरोध भी किया जिन्होनें एक अलग मतदाता के खिलाफ आवाज उठाई थी जिसकी उन्होनें दलितों के चुनावों में हिस्सा बनने की मांग की थी।

किन बाद में वे गांधी जी के विचारों को समझ गए जिसे पूना संधि (Poona Pact) भी कहा जाता है जिसके मुताबिक एक विशेष मतदाता की बजाय क्षेत्रीय विधायी विधानसभाओं और राज्यों की केंद्रीय परिषद में दलित वर्ग को आरक्षण दिया गया था।

आपको बता दें कि पूना संधि पर डॉक्टर भीमराव अंबेडकर और ब्राह्मण समाज के प्रतिनिधि पंडित मदन मोहन मालवीय के बीच सामान्य मतदाताओं के अंदर अस्थाई विधानसभाओं के दलित वर्गों के लिए सीटों के आरक्षण के लिए पूना संधि पर भी हस्ताक्षर किए गए थे।

1935 में अम्बेडकर को सरकारी लॉ कॉलेज का प्रधानचार्य नियुक्त किया गया और इस पद पर उन्होनें दो साल तक काम किया। इसके चलते अंबेडकर मुंबई में बस गये, उन्होने यहाँ एक बडे़ घर का निर्माण कराया, जिसमे उनके निजी पुस्तकालय मे 50 हजार से ज्यादा किताबें भी थी।

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी का राजनैतिक करियर – B R Ambedkar Political Career

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर – B R Ambedkar जी ने साल 1936 में स्वतंत्र लेबर पार्टी की स्थापना की। इसके बाद 1937 में केन्द्रीय विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी ने 15 सीटों से जीत हासिल की। उस साल 1937 में अंबेडकर जी ने अपनी पुस्तक ‘द एनीहिलेशन ऑफ़ कास्ट’ भी प्रकाशित की जिसमें उन्होंने हिंदू रूढ़िवादी नेताओं की कठोर निंदा की और देश में प्रचलित जाति व्यवस्था की भी निंदा की।

इसके बाद उन्होनें एक और पुस्तक प्रकाशित की थी ‘Who Were the Shudras?’ (‘कौन थे शूद्र) जिसमें उन्होनें दलित वर्ग के गठन की के बारे में व्याख्या की।

15 अगस्त, 1947 में भारत, अंग्रेजों की हुकूमत से जैसे ही आजाद हुआ, वैसे ही उन्होंने अपनी राजनीतिक पार्टी (स्वतंत्र लेबर पार्टी) को अखिल भारतीय अनुसूचित जाति संघ (ऑल इंडिया शेड्यूल) कास्ट पार्टी में बदल दिया। हालांकि, अंबेडकर जी की पार्टी 1946 में हुए भारत के संविधान सभा के चुनाव में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई थी।
Original Photos of Dr Ambedkar | Photo, Photo album quote, Buddha ...
इसके बाद कांग्रेस और महात्मा गांधी ने दलित वर्ग को हरिजन नाम दिया। जिससे दलित जाति हरिजन के नाम से भी जानी जाने लगी लेकिन अपने इरादों के मजबूत और भारतीय समाज से छूआछूत हमेशा के लिए मिटाने वाले अंबेडकर जी को गांधी जी का दिया गया हरिजन नाम नगंवार गुजरा और उन्होनें इस बात का जमकर विरोध किया ।

उनका कहना था कि “अछूते समाज के सदस्य भी हमारे समाज का हिस्सा हैं, और वे भी समाज के अन्य सदस्यों की तरह ही नॉर्मल इंसान है।“

इसके बाद डॉक्टर भीमराव अंबेडकर – B R Ambedkar जी को वाइसराय एग्जीक्यूटिव कौंसिल में श्रम मंत्री और रक्षा सलाहकार नियुक्त किया गया। अपने त्याग और संघर्ष और समर्पण के बल पर वे आजाद भारत के पहले लॉ मिनिस्टर बने, दलित होने के बाबजूद भी डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी का मंत्री बनना उनके जीवन की किसी बड़ी उपलब्धि से कम नहीं थी।

भीमराव अंबेडकर जी ने किया भारतीय संविधान का गठऩ – Constitution of India

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का संविधान के निर्माण का मुख्य उद्देश्य देश में जातिगत भेदभाव और छूआछूत को जड़ से खत्म करना था और एक छूआछूत मुक्त समाज का निर्माण कर समाज में क्रांति लाना था साथ ही सभी को समानता का अधिकार दिलाना था।

भीमराव अंबेडकर जी को 29 अगस्त, 1947 को संविधान के मसौदा समिति के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया। अंबेडकर जी ने समाज के सभी वर्गों के बीच एक वास्तविक पुल के निर्माण पर जोर दिया। भीमराव अंबेडकर – B R Ambedkar के मुताबिक अगर देश के अलग-अलग वर्गों के अंतर को कम नहीं किया गया तो देश की एकता बनाए रखना मुश्किल होगा, इसके साथ ही उन्होनें धार्मिक, लिंग, और जाति समानता पर खास जोर दिया।

भीमराव अंबेडकर साहब शिक्षा, सरकारी नौकरियों और सिविल सेवाओं में अनूसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के लिए आरक्षण शुरु करने के लिए विधानसभा का समर्थन हासिल करने में भी सफल रहे।
  • भारतीय संविधान ने भारत के सभी नागरिकों को धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार दिया।
  • छूआछूत को जड़ से खत्म किया।
  • महिलाओं को अधिकार दिलवाए।
  • समाज के वर्गों के बीच में फैले अंतर को खत्म किया।

आपको बता दें कि भीमराव अंबेडकर – B R Ambedkar जी ने समता, समानता, बन्धुता एवं मानवता आधारित भारतीय संविधान को करीब 2 साल, 11 महीने और 7 दिन की कड़ी मेहनत से 26 नवंबर 1949 को तैयार कर तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को सौंप कर देश के सभी नागिरकों को राष्ट्रीय एकता, अखंडता और व्यक्ति की गरिमा की जीवन पद्धति से भारतीय संस्कृति को अभिभूत किया।

संविधान के निर्माण में अपनी भूमिका के अलावा उन्होनें भारत के वित्त आयोग की स्थापना में भी मद्द की। आपको बता दें कि उन्होनें अपनी नीतियों के माध्यम से देश आर्थिक और सामाजिक स्थिति में बदलाव कर प्रगति की। इसके साथ ही उन्होनें स्थिर अर्थव्यवस्था के साथ मुक्त अर्थव्यवस्था पर भी जोर दिया।

वे निरंतर महिलाओं की स्थिति में भी सुधार करने के लिए प्रयासरत रहे। भीमराव अंबेडकर जी ने साल 1951 में, महिला सशक्तिकरण का हिन्दू संहिता विधयेक पारित करवाने की भी कोशिश की और इसके पारित नहीं होने पर उन्होनें स्वतंत्र भारत के प्रथम कानून मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया।

इसके बाद भीमराव अंबेडकर – B R Ambedkar जी ने लोकसभा में सीट के लिए चुनाव भी लड़ा लेकिन वे इस चुनाव में हार गए। बाद में उन्हें राज्यसभा में नियुक्त किया गया, जिसके बाद उनकी मृत्यु तक वे इसके सदस्य रहे थे।

साल 1955 में उन्होनें अपना ग्रंथ भाषाई राज्यों पर विचार प्रकाशित कर आन्ध्रप्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र को छोटे-छोटे और प्रबंधन योग्य राज्यों में पुनर्गठित करने का प्रस्ताव दिया था, जो उसके 45 सालों बाद कुछ प्रदशों में साकार हुआ।

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर – B R Ambedkar जी ने निर्वाचन आयोग, योजना आयोग, वित्त आयोग, महिला पुरुष के लिये समान नागरिक हिन्दू संहिता, राज्य पुनर्गठन, बड़े आकार के राज्यों को छोटे आकार में संगठित करना, राज्य के नीति निर्देशक तत्व, मौलिक अधिकार, मानवाधिकार, काम्पट्रोलर और ऑडीटर जनरल, निर्वाचन आयुक्त और राजनीतिक ढांचे को मजबूत बनाने वाली सशक्त, सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक एवं विदेश नीतियां भी बनाई।

यही नहीं डॉक्टर भीमराव अंबेडकर – B R Ambedkar अपने जीवन में लगातार कोशिश करते रहे और उन्हें अपने कठिन संघर्ष और प्रयासों के माध्यम से प्रजातंत्र को मजबूती देने राज्य के तीनों अंगों न्यायपालिका, कार्यपालिका एवं विधायिका को स्वतंत्र और अलग-अलग किया साथ ही समान नागरिक अधिकार के अनुरूप एक व्यक्ति, एक मत और एक मूल्य के तत्व को प्रस्थापित किया।
Tributes on Mahaparinirvana Diwas of Dr. Babasaheb Ambedkar ...
इसके अलावा विलक्षण प्रतिभा के धनी भीमराव अंबेडकर जी ने विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका में अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगों की सहभागिता भी संविधान द्वारा सुनिश्चित की और भविष्य में किसी भी प्रकार की विधायिकता जैसे ग्राम पंचायत, जिला पंचायत, पंचायत राज इत्यादि में सहभागिता का मार्ग प्रशस्त किया।

सहकारी और सामूहिक खेती के साथ-साथ उपलब्ध जमीन का राष्ट्रीयकरण कर भूमि पर राज्य का स्वामित्व स्थापित करने और सार्वजनिक प्राथमिक उद्यमों और बैकिंग, बीमा आदि उपक्रमों को राज्य नियंत्रण में रखने की पुरजोर सिफारिश की और किसानों की छोटी जोतों पर निर्भर बेरोजगार श्रमिकों को रोजगार के ज्यादा से ज्यादा अवसर प्रदान करने के लिए उन्होंने औद्योगीकरण के लिए भी काफी काम किया था।

डॉक्टर भीमराव अंबे़डकर का निजी जीवन – B R Ambedkar Short Biography

दलितों के मसीहा कहे जाने वाले डॉक्टर भीमराव अंबेडकर – B R Ambedkar जी ने अपनी पहली शादी साल 1906 में रमाबाई – Ramabai Ambedkar से की थी। इसके बाद दोनों ने एक बेटे को जन्म दिया था जिसका नाम यशवंत था। साल 1935 में रामाबाई की लंबी बीमारी की वजह से मृत्यु हो गई थी।

1940 में भारतीय संविधान का ड्राफ्ट पूरा करने के बाद भीमराव अंबेडकर – B R Ambedkar जी को भी कई बीमारियों ने जकड़ लिया था जिसकी वजह से उन्हें रात को नींद नहीं आती थी, हमेशा पैरों में दर्द रहता था और उनकी डायबिटीज की समस्या भी काफी बढ़ गई थी जिस वजह से वे इन्सुलिन भी लेते थे।

इसके इलाज के लिए वे बॉम्बे गए जहां उनकी मुलाकात पहली बार एक ब्राह्मण डॉक्टर शारदा कबीर से हुई। इसके बाद दोनों ने शादी करने का फैसला लिया और 1948 को दोनों शादी के बंधन में बंध गए। शादी के बाद डॉक्टर शारदा ने अपना नाम बदलकर सविता अंबेडकर – Savita Ambedkar रख लिया।

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने अपनाया बौद्ध धर्म – Dr. Bhimrao Ambedkar accepted Buddhism

साल 1950 में भीमराव अंबेडकर – B R Ambedkar एक बौद्धिक सम्मेलन में शामिल होने के लिए श्रीलंका चले गए। जहां जाकर वे बौद्ध धर्म के विचारों से इतने प्रभावित हुए कि उन्होनें बौद्ध धर्म को अपनाने का फैसला लिया और उन्होनें खुद को बौद्ध धर्म में रूपान्तरण कर लिया। इसके बाद वे भारत वापस आ गए।

भारत लौटने पर उन्होनें बौद्ध धर्म के बारे में कई किताबें भी लिखी। वे हिन्दू धर्म के रीति-रिवाज के घोर विरोधी थे और उन्होनें जाति विभाजन की कठोर निंदा भी की है।

साल 1955 में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर – B R Ambedkar जी ने भारतीय बौद्ध महासभा का गठन किया और उनकी किताब ‘द बुध्या व उनके धर्म उनके मरने के बाद प्रकाशित हुई।

आपको बता दें कि 14 अक्टूबर, 1956 में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर – B R Ambedkar जी ने एक आम सभा का भी आयोजन किया जिसमें उन्होनें अपने करीब 5 लाख अनुयायियों को बौद्ध धर्म में रुपान्तरण किया। इसके बाद डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी काठमांडू में आयोजित चौथी वर्ल्ड बुद्धिस्ट कॉन्फ्रेंस में शामिल हुए। 2 दिसंबर 1956 में उन्होनें अपनी आखिरी पांडुलिपि ‘द बुध्या और कार्ल्स मार्क्स’ को पूरा किया।

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी की म़ृत्यु – B R Ambedkar Death

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर – B R Ambedkar जी साल 1954 और 1955 में अपनी बिगड़ती सेहत से काफी परेशान थे उन्हें डायबिटीज, आंखों में धुंधलापन और अन्य कई तरह की बीमारियों ने घेर लिया था जिसकी वजह से लगातार उनकी सेहत बिगड़ रही थी।

File:Respected people's pay finale tribute to Dr. Babasaheb ...

लंबी बीमारी के बाद उन्होनें 6 दिसंबर 1956 को अपने घर दिल्ली में अंतिम सांस ली, उन्होनें खुद को बौद्ध धर्म में बदल लिया था इसिलिए उनका अंतिम संस्कार बौद्ध धर्म की रीति-रिवाज के अनुसार ही किया गया उनके अंतिम संस्कार में सैकड़ों की तादाद में लोगों ने हिस्सा लिया और उनको अंतिम विदाई दी।

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की जयंती – Ambedkar Jayanti

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर – B R Ambedkar दलितों के उत्थान करने लिए और समाज में दिए गए उनके योगदान का जश्न मनाने के लिए, और उनके सम्मान के लिए उनके स्मारक का निर्माण किया गया था। इसके साथ ही उनके जन्मदिन 14 अप्रैल को अंबेडकर की जयंती की नाम से मनाया जाने लगा।

उनके जन्मदिवस वाले दिन को नेशनल हॉलीडे घोषित किया। इस दिन सभी निजी, सरकारी शैक्षणिक संस्थानों की छुट्टी होती है। 14 अप्रैल में मनाई जाने वाली अम्बेडकर जयंती को भीम जयंती (Bhim Jayanti) भी कहा जाता है। उन्होनें देश के लिए अहम योगदान की वजह से आज भी उन्हें याद किया जाता है।
डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के योगदान- Dr Bhimrao Ambedkar Contribution

भारत रत्न डॉक्टर भीमराव अंबेडकर – B R Ambedkar ने अपनी जिंदगी के 65 सालों में देश को सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षणिक, धार्मिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक, औद्योगिक, संवैधानिक समेत अलग-अलग क्षेत्रों में कई काम कर राष्ट्र के निर्माण में अहम योगदान दिया।

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी की किताबें – BR Ambedkar Books
  • पहला प्रकाशित लेख – भारत में जाति : उनकी प्रणाली, उत्पत्ति और विकास है (Castes in India: Their Mechanism, Genesis and Development)
  • इवोल्युशन ओफ प्रोविन्शिअल फिनान्स इन ब्रिटिश इंडिया.
  • जाति के विनाश ((Annihilation of Caste)
  • हू वर द शुद्राज़? (Who Were the Shudras?)
  • द अनटचेबलस: ए थीसिस ऑन द ओरिजन ऑफ अनटचेबिलिटी (The Untouchables: Who Were They and Why They Became Untouchables)
  • थॉट्स ऑन पाकिस्तान (Thoughts on Pakistan)
  • द बुद्ध एंड हिज़ धम्म (The Buddha and His Dhamma)
  • बुद्ध या कार्ल मार्क्स (Buddha Or Karl Marx)
मरणोपरान्त सम्मान – BR Ambedkar Awards
  • डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी की स्मारक दिल्ली स्थित उनके घर 26 अलीपुर रोड में स्थापित की गई है।
  • अम्बेडकर जयंती पर सार्वजनिक अवकाश रखा जाता है।
  • 1990 में उन्हें मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया है।
  • कई सार्वजनिक संस्थान का नाम उनके सम्मान में उनके नाम पर रखा गया है जैसे कि हैदराबाद, आंध्र प्रदेश का डॉ. अम्बेडकर मुक्त विश्वविद्यालय, बी आर अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय- मुजफ्फरपुर।
  • डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा नागपुर में है, जो पहले सोनेगांव हवाई अड्डे के नाम से जाना जाता था।
  • अम्बेडकर का एक बड़ा आधिकारिक चित्र भारतीय संसद भवन में प्रदर्शित किया गया है।
डॉक्टर बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर से जुड़े कुछ रोचक तथ्य, जिनके बारे में शायद ही आप जानते होगे – Facts about Ambedkar

  • भीमराव अंबेडकर अपने माता-पिता के चौदहवीं और आखिरी बच्चे थे।
  • डॉ. अम्बेडकर – B R Ambedkar का मूल नाम अम्बावाडेकर था। लेकिन उनके शिक्षक, महादेव अम्बेडकर, जो उन्हें बहुत मानते थे, ने स्कूल रिकार्ड्स में उनका नाम अम्बावाडेकर से अम्बेडकर कर दिया।
  • बाबासाहेब मुंबई के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज में दो साल तक प्रिंसिपल पद पर कार्यरत रहे।
  • डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर – B R Ambedkar की शादी 1906 में 9 साल की रमाबाई से कर दी गई थी , वहीं 1908 में वे एलफिंस्टन कॉलेज में दाखिला लेने वाले पहले दलित बच्चे बने।
  • डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर को 9 भाषाएं जानते थे उन्होनें 21 साल तक सभी धर्मों की पढ़ाई भी की थी।
  • डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर के पास कुल 32 डिग्री थी। वो विदेश जाकर अर्थशास्त्र में PHD करने वाले पहले भारतीय भी बने। आपको बता दें कि नोबेल प्राइज जीतने वाले अमर्त्य सेन अर्थशास्त्र में इन्हें अपना पिता मानते थे।
  • भीमराव अंबेडकर पेशे से वकील थे। वो 2 साल तक मुंबई के सरकारी लॉ कॉलेज के प्रिंसिपल भी बनें।
  • डॉ. बी. आर अम्बेडकर – B R Ambedkar भारतीय संविधान की धारा 370, (जो जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा देता है) के खिलाफ थे।
  • बाबासाहेब अम्बेडकर विदेश जाकर अर्थशास्त्र डॉक्टरेट की डिग्री हासिल करने वाले पहले भारतीय थे।
  • डॉ. अम्बेडकर ही एक मात्र भारतीय हैं जिनकी portrait लन्दन संग्रहालय में कार्ल मार्क्स के साथ लगी हुई है।
  • इंडियन फ्लैग में अशोक चक्र को जगह देने का श्रेय भी डॉ. अम्बेडकर को जाता है।
  • B R Ambedkar Labor Member of the Viceroy’s Executive Council के सदस्य थे और उन्ही की वजह से फैक्ट्रियों में कम से कम 12-14 घंटे काम करने का नियम बदल कर सिर्फ 8 घंटे कर दिया गया था ।
  • वो बाबासाहेब ही थे जिन्होंने महिला श्रमिकों के लिए सहायक Maternity Benefit for women Labor, Women Labor welfare fund, Women and Child, Labor Protection Act जैसे कानून बनाए।
  • बेहतर विकास के लिए 50 के दशक में ही बाबासाहेब ने मध्य प्रदेश और बिहार के विभाजन का प्रस्ताव रखा था, पर सन 2000 में जाकर ही इनका विभाजन कर छत्तीसगढ़ और झारखण्ड का गठन किया गया।
  • बाबासाहेब को किताबें पढने का बड़ा शौक था. माना जाता है कि उनकी पर्सनल लाइब्रेरी दुनिया की सबसे बड़ी व्यक्तिगत लाइब्रेरी थी, जिसमे 50 हज़ार से अधिक पुस्तकें थीं.
  • डॉ. अम्बेडकर बाद के सालों में डायबिटीज से बुरी तरह ग्रस्त थे।
  • भीमराव अंबेडकर ने हिन्दू धर्म छोड़ते समय 22 वचन दिए थे जिन्होनें कहा था कि, मै राम और कृष्ण, जो भगवान के अवतार माने जाते हैं उनकी कभी पूजा नहीं करूंगा।
  • 1956 में अंबेडकर जी ने अपना धर्म परिवर्तन कर बौद्ध धर्म अपना लिया था वे हिन्दू धर्म की रीति-रिवाजों और जाति विभाजन के विरोधी थे।
  • डॉक्टर भीमराव अंबेडकर – B R Ambedkar ने 2 बार लोकसभा चुनाव लड़ा था और दोनों बार वे हार गए।

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